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कविता

मन को उर्वर बनाने के लिए

जितेंद्र श्रीवास्तव


इच्छाओं का व्याकरण
सृजित होता है
संवेदनाओं के रण में

संवदेनाओं के इतिहास में
अक्सर नहीं होते नायक
वहाँ मन होता है राग-विराग से भरा हुआ
उसे कहीं से छेड़ना
विकल करना है खुद को

हारना नहीं होता
किसी इच्छा का पूरा न होना

बाबूजी कहते थे
कभी-कभी किसी इच्छा को मारना
जरूरी होता है
मन को उर्वर बनाने के लिए।


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